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सौतेला बाप ( भाग - 10 )

अध्याय -१० 

छगन को पीछा करते देख झुमरी वही सुनसान रास्ते पर रुक गई। 
" तुम ईहा का कर रहे छगन.... कोई देख लिया तो?" 

" गांव के लडको की बुरी दृष्टि है तुम पर , हम नाही चाहते कउनो देखे तुमको। और हमरे रहते कउनो तोहरे पास ना फटकेंगे!" 

झुमरी शरमा कर बोली " इतना पिरेम है?" 

" मगर का फायदा तुम तो हाथ छुड़ा कर चली गई!" छगन नाराजगी दिखाते हुए बोला। 

" ऐसी बात ना है छगन। मगर अगर तुम हमको छुए तो....!" 

" तो का झुमरी?" 

" हम पेट से हो जायेंगे...ऐसा सभी सहेलियां कहती है। फूलवा भौजी का भी हाथ मास्टर बाबू शादी के बाद पकड़े.... ई सब काम सोहाग की रात में होवत है!" 

छगन परेशान होकर " हमको माफ कर दो झुमरी...हमारा कछु गलत इरादा नाही था हम तो बस तुम्हे बतलाना चाहते थे कि कितना पीरेम करते है। हम अपने मित्र सहपाठी का हाथ पकड़ते है तो ऊ तो पेट से ना हुआ!" 

" धत्त...लड़का लड़की को छुएगा तब होगा!" 

" ठीक बा , हम मास्टर साहब से बात करेंगे। ऊ ज्ञानी है जरूर ज्ञान देंगे। फिर हम तुमसे बियाह कर लेंगे...और हमरे साथी मित्र शादी में जिम्मेदारी उठाएंगे!" 

" पर तोहरी माई को सुंदर बहुरानी चाही , जो दस रुपिया दहेज लेकर आए!" 

" हमको दहेज नाही बस झुमरी चाही। ग्यारहवीं का परीक्षा देकर बारहवीं के बाद मास्टर बाबू जैसे ही ऊंचे पद वाले इंसान बनकर आयेंगे तुम्हे अपना बनाने!" 

झुमरी तो गदगद होकर दुपट्टे को उंगलियों में फसाते हुए आगे बढ़ जाती है और छगन उसके पीछे - पीछे अपने लहराते बालों में हाथ फिराते हुए चलने लगा। 

इधर सभी औरते फूलवा के पास बैठी थी कि परधान अंदर आकर बोला " माई ई खुशबू वाला साबुन मास्टर बाबू को दे आओ.... गुशल खाने में बढ़िया साबुन नाही होगा..!" 
बेना ( पंखी ) हाँकते हुए परधान की माई बोली " ह तो जो उकी मेहरारू है ऊही जाए!" 

सभी औरते फूलवा की ओर देख हंसने लगी। फूलवा शरम से पानी - पानी होने लगी। 
" हम कईसे जाए...मास्टर साहब बीना कपड़ो के होंगे तो?" 

विनीता काकी ठिठोली करती हुई बोली " जईसे रतिया में देखी ना होगी तू...जा अब !" 

फूलवा खुशबू वाला साबुन लिए धीरे - धीरे कदम बढ़ाती हुई गुशलखाने के पास पहुंची। वहां परदा लगा हुआ था और अंदर से मधुआ के बोलने की आवाज आ रही थी। 

" तो तुम्ही हमरे पुराने बाबू को कुएं में ढकेले?" 

फूलवा जल्दी से परदा पार कर अंदर जाकर बोली " का बोल रहा बाबू?" फुलवा को अचानक से देख मास्टर बाबू अपनी जगह से उठे , मगर फुलवा पानी की चिकनाई से फिसल कर उनसे टकरा गई और सीधा मास्टर बाबू के भींगे बदन से जा लगी। मास्टर बाबू उसे पकड़ लिए। 
" तुम ठीक हो फुलवा?" 

फुलवा को काटो तो खून नही। वो उलझन में पड़ गई कि अब बोले तो क्या बोले। 
" साबुन....खुशबू वाला.... परधान भईया दिए...!" 

" तो लगाने आ गई हमे?" 

फुलवा मास्टर बाबू के मजाक को समझ ना पाई और रोने लगती है दुसरी ओर मुड़ कर। 

मास्टर बाबू फूलवा को रोते देख मधुआ से बोले " मधुआ जाओ कमरे से हमारा दूसरा कुर्ता लेकर आओ !" 

" ठीक सौतेले बापू!" कहकर मधुआ गुशलखाने से भागता हुआ आंगन में पहुंचा तो सभी औरते उसे घेर ली। 

" मधुआ फुलवा गई थी , मास्टर बाबू तुमको जाने को बोले का?" 

" तनिक लाज शरम नाही है निरीमिया चाची। इतना ध्यान अपने खेतो पर देती तो आज धान होता!" कहकर मधुआ कुर्ता लेने चला गया। 

गुशलखाने में मास्टर बाबू फुलवा को पकड़ अपनी ओर किए और हाथो से उसका चेहरा ऊपर उठाए। 

" हम हंसी ठिठोली कर रहे थे फुलवा....भरोसा रखो हम पर!" 

मगर फुलवा फिर भी रो रही थी। 
" ठीक है अब ऐसा मजाक नहीं करेंगे। अच्छा मार लो हमे!" 

" हम कैसे मारे आपको? हम तो नहाए नाही थे और आपसे छुआ गए , आपको फिर से नहाना होगा!" 

" हां तुम्हरे लाए साबुन से फिर से नहाए लेंगे मधुआ की अम्मा!" 

मास्टर साहब के साथ फुलवा भी हंसने लगी। तभी मधुआ कुर्ता पहने आया जो उसके पैरो से बह कर जमीन पर लग गंदा हो रहा था। फुलवा मधुआ को डांट लगाने लगी। 
" बापू का कुर्ता काहे गंदा कर रहे बाबू?" 

" कहा़ गंदा है माई!" और हाथो से कुर्ते को झाड़ने लगा। मास्टर बाबू मधुआ को देख बोले " चलो अभी खुशबू वाले साबुन से नहाना है हम लोगो को !" 

मधुआ कुर्ता निकालते हुए बोला " अच्छा! फिर माई तुम भी आओ !" 

फुलवा घबरा कर बोली " नाही जगह नाही है बाबू तुम नहा लो !" 

" इतनी जगह तो है माई!" 

" अभी तुम्हारी माई को अच्छे से तैयार होना होगा मधुआ एकदम दुल्हन जैसे...तो हम नहा लेते है फिर वो अच्छे से नहाएगी!" 

मधुआ खुश होकर अपनी माई को देखने लगा। 
" माई अब तुम सफेद पुराने कपड़े नाही पहनोगी? पीली साड़ी पहनना माई...और बड़की बिंदी लगाना। झुमका भी पहिनना!" 

" हा बाबू सब पहनेंगे!" 

" तो माई झुमका ले आए सोनार काका के ईहा से , जो पहिले वाले बापू गिरवी रखे थे?" 

फुलवा मास्टर साहब को देख मधुआ को डांट लगती है। 
" चुप बाबू...हमको झुमका नाही पसंद !" 

" पर माई , तुम तो अगल बगल की काकी और चाची के झुमके देख बहुत ललचाती थी कि तुम्हरे पास झुमका होता तो पहिनती!" 

" एक बार कह दिए न बाबू चुप...!" 

मास्टर साहब जो कब से फुलवा को देख रहे थे , वो बोल पड़े " क्यू चुप करवा रही बच्चे को? हमको भी देखना है तुम्हे झुमके में। मधुआ जल्दी से नहा लो फिर सुनार काका के पास चलेंगे तुम्हारी माई का झुमका लाने !" 

फुलवा " पर...मास्टर बाबू!" 

" अरे अरे...कब तक हमे बिना कपड़े के निहारती रहोगी मधुआ की माई...!" 
फुलवा इतना सुनते ही बाहर भाग जाती है , और मास्टर बाबू हंसते हुए मधुआ को नहलाने लगे।

बस दो अध्याय और बचे है , जो जो कहानी को इतना पसंद किए मधुआ की ओर से " धनयबाद " 😂 मैं आउट ऑफ सिटी थी इसीलिए पार्ट देरी से आ रहा 

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3 Comments

RISHITA

06-Aug-2023 10:15 AM

Nice part

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Gunjan Kamal

24-Nov-2022 06:55 PM

👏👌🙏🏻

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